Chauragarh Fort Narsingpur – चौरागढ़ किला का इतिहास, विशेषताएं एवं प्राचीन कहानियां

मध्य प्रदेश राज्य के नरसिंहपुर जिले में स्थित Chauragarh Fort Narsingpur का एक प्राचीन किला है यहां किला जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है इस किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में गौड़ शासक राजा संग्राम शाह ने करवाया था। भारत सरकार द्वारा इस किले की देखभाल न होने के कारण आज यहां किला खंडहर में बदल गया है परंतु इस किले की अनेक कहानियां एवं विशेषताएं हैं जो हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताएंगे।

Chauragarh Fort Narsingpur का इतिहास विशेषताएं एवं प्राचीन कहानियां

चौरागढ़ किला जिले मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर तथा गाडरवारा रेलवे स्टेशन से 19 किलोमीटर दूर चौगान गांव में स्थित सतपुड़ा के पर्वतों के ऊपर गौड़ शासक संग्राम शाह ने इस किले का निर्माण 1543 ई. में करवाया था। संग्राम शाह गौडवंश के 48वें राजा थे।

राजा संग्राम शाह ने अपने पिता राजा अर्जुन सिंह के बाद गोंडवाना के राजा के रूप में गद्दी संभाली। संग्रामसिंह ने अपने शौर्य और नेतृत्व के बल पर 52 किलों को जीत लिया और गोंडवाना के राज्य में सम्मिलित कर दिया। यह किला गोंडवाना के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में जाना जाता है।

संग्राम शाह के उत्तराधिकारियों में दलपति शाह ने चौरागढ़ में सात वर्षों तक शासन किया। उनके बाद उनकी वीरांगना रानी दुर्गावती ने राज्य को संभाल अपने साहस और वीरता से 16 वर्षों तक (1540-1564) शासन किया। 1564 में अकबर के सिपहसालार आतफ खान के साथ युद्ध करते समय उनकी आंख में तीर लग गया था जिसके दौरान, रानी दुर्गावती ने वीरगति को प्राप्त किया।

राजा प्रेमनारायण की भक्ति: 18वीं सदी में चौगान किले के अंदर बसा एक और अनन्य किस्सा है। इस समय के राजा प्रेमनारायण ने यहां की बागडोर संभाली थी। उन्होंने प्रतिदिन मां नर्मदा के स्नान के लिए इस तालाब में जाते थे। उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर, मां नर्मदा ने इस तालाब को अपना आवास बनाया। इसीलिए, यह तालाब भीषण गर्मी में भी नहीं सूखता है, क्योंकि उसमें मां नर्मदा की कृपा है।

पारसमणि रहस्य

चौरागढ़ किले का इतिहास बहुत प्राचीन है और यह किला अनेक कविताओं और कहानियों के लिए जाना जाता है। एक ऐसी ही कहानी है कि अंग्रेजों ने पारसमणि ढूंढने के लिए इस किले के पास के तालाब में हाथी की सहायता ली थी।

कहानी के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है जब इंग्लैंड के शासकों ने भारत की खोज की और उन्हें यह अद्भुत पत्थर मिलने की खबर मिली। यह पत्थर एक ऐसा रत्न था जिसे पारसमणि कहा जाता था, जिसमें अनगिनत धातुओं की महत्वपूर्ण गुणधर्म थे। अंग्रेज सम्राटों को इस पारसमणि के लिए भारत आने का संदेश मिला।

अंग्रेजों के पास विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न साधन थे, लेकिन पारसमणि जैसे रत्न को ढूंढना उनके लिए एक चुनौती थी। इसी चुनौती को सामने रखते हुए, वे चौरागढ़ किले के पास के तालाब के पानी में पारसमणि की खोज करने का निर्णय लिया।

हाथी की सहायता से अंग्रेजों ने तालाब के पानी में अगुआ नहाया और पारसमणि की खोज शुरू की। लेकिन दुःख की बात है कि उन्हें पारसमणि नहीं मिली, परंतु जिस चेन से हाथी बांधा गया था उसकी दो कड़ियां सोने की हो गई थीं।

इतिहास में दर्ज जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र में स्थित एक मंदिर में एक साधु आए थे जिन्होंने पारस पत्थर होने की बात कही थी।चौरागढ़ किले के पास के तालाब में पारसमणि की खोज की जाने वाली इस कहानी के द्वारा हमें हमारे इतिहास और ऐतिहासिक स्थलों की महत्वपूर्णता का पता चलता है।

चौरागढ़ किला अंग्रेजों ने किया ध्वस्त क्यों

इसे अंग्रेजों ने मराठा पेशवाओं से छीना था। इतिहास के मुताबिक, जब अंग्रेजों ने चौरागढ़ किले को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की, तो उन्हें मराठा पेशवा की शक्ति से डर था। अपने उस डर को दूर करने के लिए, अंग्रेजों ने किले को ध्वस्त करने का फैसला किया। वे चाहते थे कि कोई भी किले का उपयोग न कर सके, और उनका साम्राज्य भी न किसी के हाथों में चला जाए।

आज चौरागढ़ किला एक खंडहर की तरह है, जो केवल अपने वैभवशाली अतीत की कहानियों को सुनाता है। हालांकि, इस किले की स्थिति चिंताजनक है। इसे बचाने के लिए सरकार को इसे विकसित करने और लोगों को बढ़ावा देने की जरूरत है। ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इसका आनंद ले सकें

समापन:

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