Kukarramath Temple Dindori – कुकर्रामठ मंदिर डिंडौरी

Kukarramath Temple Dindori एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, और इसे “ऋणमुक्तेश्वर मंदिर” के रूप में भी जाना जाता है। कुकर्रामठ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है, और यहाँ के पवित्र स्थल के रूप में बहुत महत्वपूर्ण है। इस मंदिर सुंदर आर्किटेक्चर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

Kukarramath Temple Dindori जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर है। अमरकंटक रोड से 10 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग से और 4 किलोमीटर अंदर जाने पर कुकर्रामठ गाँव में यह मंदिर स्थित है। कहा जाता है, कि इस मंदिर में पूजा-पाठ और दर्शन से पितृ-ऋण, देव-ऋण, और गुरु-ऋण से मुक्ति मिलती है। आस-पास के लोग और अधिकांश नर्मदा परिक्रमा वासी मंदिर के दर्शन करने अवश्य आते हैं। शिव भक्तों के लिए यहाँ का मंदिर एक पवित्र स्थल है, जो उन्हें आत्मा की शांति और संतोष प्राप्त करने में मदद करता है। कुकर्रामठ मंदिर का दर्शन करने से व्यक्ति का मन प्रसन्न होता है, जिससे उसे शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

Kukarramath Temple Dindori का निर्माण

Kukarramath Temple Dindori का इतिहास बहुत प्राचीन है, इस मंदिर का निर्माण लगभग 1000 ईसवी के पास हुआ था। माना जाता है, कुछ लोग तो इसे 8 वीं सदी का भी मानते हैं। एक मान्यतानुसार यह मंदिर कल्चुरी कालीन है, यहाँ पर प्राचीन काल में 6 मंदिर होते थे, परन्तु मौसम और समय के प्रभावों से सभी खंडहर हो गए हैं।

Kukarramath Temple Dindori
Kukarramath Temple Dindori

कुकर्रामठ मंदिर एक विशाल चबूतरे पर बना है, जिसमें मंदिर का गर्भगृह स्थित है। यहाँ पर एक विशाल शिव-लिंग विराजमान है, जो भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने भगवान शिव के वाहन नंदी की प्रतिमा स्थापित है, जो शिव के भक्तों को स्वागत करती है जिनमें प्राचीन काल में मूर्तियाँ स्थापित थीं। आज कुछ मूर्तियाँ अब खंडहर हो चुकी हैं, लेकिन कुछ मूर्तियाँ अब भी सुरक्षित हैं मंदिर की दीवारों पर भी मूर्तियाँ बनी हैं, जो प्राचीन मंदिर की भव्य आर्किटेक्चर और कला को दर्शाती हैं।

कुकर्रामठ मंदिर की लोकप्रिय कथाएं

(1) कथा के अनुसार मान्यता है, कि इस कुकर्रामठ मंदिर का निर्माण पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में किया था। पांडवों ने अज्ञातवास के समय अपने निवास के लिए यहाँ का स्थान चुना था। मंदिर के निर्माण का कार्य अधिकांश पूर्ण हो गया था, लेकिन शिखर का निर्माण पूरा नहीं हो पाया था। इसके बावजूद, पांडवों ने शिखर की चोटी पर कलश स्थापित करने के लिए एक प्लेटफॉर्म बना दिया था। हालांकि, शिखर पूर्ण होने से पहले ही सूर्योदय हो गया, जिसके कारण पांडवों को कलश स्थापित करने का अवसर नहीं मिला। इसके बावजूद, मंदिर का निर्माण पूरा हो गया, और यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन गया।

(2) मंदिर के निर्माण का संबंध एक बंजारे से है जिसमें अपने कुत्ते की समाधि के ऊपर मंदिर का निर्माण कराया था कुत्ते को कुकुर कहा जाता है इसलिए इस स्थान को का नाम कुकर्रामठ है परंतु कुछ विद्वानों के अनुसार कल्चुरी नरेश कोकल्यदेव के सहयोग से तात्कालीन शंकराचार्य ने गुरुऋण से मुक्त होने के लिए निर्माण कराया गया था। इस कारण से इसे “ऋणमुक्तेश्वर मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण करीब 5 से 6 शताब्दियों पहले हुआ था। उस समय यहाँ पांच से छः मंदिर थे, जो अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध थे। परंतु समय के साथ, रख-रखाव की कमी के कारण सभी मंदिरों के खंडहर बन गए। आज इस स्थान पर केवल इन मंदिरों के अवशेष ही देखे जा सकते हैं।

कुकर्रामठ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक स्मारक भी है, जो हमें हमारी प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है। मंदिर का सबसे विशेष समय शिवरात्रि होता है, जब यहाँ एक मेला लगता है, जिसे मड़ई भी कहा जाता है, और लाखों लोग यहां मड़ई घूमने और शिव जी के दर्शन करने आते हैं।

Chandan Ghat Dindori

कुकर्रामठ मंदिर का रखरखाव पुरातत्व विभाग द्वारा

मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले में स्थित कुकर्रामठ मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, जिसे म.प्र. पुरातत्व विभाग की देख रेख में रखा जाता है। यहां पर पुरातत्व विभाग का नोटिस बोर्ड भी लगाया गया है, जो इस मंदिर की महत्वपूर्ण को दर्शाता है। 1958 में, पुरातत्व विभाग ने इसे प्राचीन स्मारक पुरातत्वीय स्थल सुरक्षा के रूप में घोषित किया। मंदिर के पास ही पुरातत्व विभाग ने एक शिलालेख स्थापित किया है, जिसमें मंदिर का इतिहास के बारे में बताया गया है। विभाग ने मंदिर की सुरक्षा के लिए चारों ओर दीवारें बनाई हैं।

मंदिर की सुरक्षा प्राचीन काल से ही की गई है। 1904 में अंग्रेजों ने मंदिर के सुरक्षा का प्रयास किया था, जो बाद में 1971 में भारत सरकार द्वारा मरम्मत करवाई गई। इसके बाद, 2010 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने मंदिर की सुरक्षा बढ़ाने के लिए चारों ओर की दीवारों को ऊँचा करने का निर्णय लिया।

पुरातत्व विभाग के कर्मचारियों ने बताया है, कि पहले 12 मूर्तियाँ थीं, जिनमें भगवान विष्णु, भगवान हनुमान, महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, शेर और कुत्ते की प्रतिमायें थीं। इनमें से कुछ प्रतिमाएं अमरकंटक म्यूजियम में रखा गया हैं और कुछ प्रतिमाएं कुकर्रामठ मंदिर के पास सुरक्षित रखी गई हैं। इन सभी मूर्तियां को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।

Kukarramath Temple Dindori एक धार्मिक स्थल के रूप में ही नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में भी महत्वपूर्ण है। इस तरह, कुकर्रामठ मंदिर एक महत्वपूर्ण स्थान है जो हमें हमारे प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को समझने और महसूस करने का अवसर प्रदान करता है।

समापन:

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